धरा के अंक में 

– श्वेता उपाध्याय
श्वेता उपाध्याय एक लेखिका, शिक्षाविद एवं पर्यावरणविद है। जीवन, प्रकृति और जीवन संघर्ष को एक नए रूप में देखती ये कवयित्री एवं कथाकार अपनी रचनाओं से एक अनूठा संसार रचती है।
तीसरा प्रिंट संस्करण केवल 4 महीनों में

धरा के अंक में - श्वेता उपाध्याय

मुंबई शहर में विराग के साथ रहती मुक्ता जब थोड़ी आशंका, अनुराग और आश्वस्ति समेटे अपने घर मंडला लौटती है तो यहाँ उसे मिलती है कुछ निर्मूल आशंकायें। संवाद के माध्यम सेतु तो हैं पर क्या ये पर्याप्त हैं?

प्रकृति, नदी, पेड़, परिवार और अपने अंतर्मन से निरंतर संवाद करती मुक्ता एक पर्यावरणविद् होकर क्या अपने यथार्थ से मुक्त होना चाहती हैं?

क्या महानगर की अतिवादी बयार में विराग का प्रेम तटस्थ रह सकता है? क्या विराग स्पर्श की अनुपस्थिति में एक नया साथ चुनने को स्वतंत्र है?

उन्मुक्त मुक्ता और बंधन में आस्था रखता विराग आखिर सहमति- असहमति के किस सेतु से गुज़रेंगे?

“धरा होम स्टे” में एक बैगा परिवार का आतिथ्य स्वीकार मुक्ता जीवन, जीवटता और जंगल के जीवन-तंत्र को आत्मसात कर रूपांतरण की सजीव प्रक्रिया से रूबरू होती हैं पर वनवासी समुदाय के प्रति मुक़्ता का प्रेम स्वान्तः सुखाय का भाव हैं या हरित -व्यापार करने की कोई नयी योजना?

उपन्यास कथानकों की बतकही से उनकी मंशा टटोलता उनके दिल की हर गिरह को खोल बेझिझक वो प्रश्न करता हैं जो प्रज्ञा से उपजते है और समानुभूति की भाषा बोलते हैं। अंतर्द्वंदों से जूझते मुक्ता और विराग नदी, पर्वत, विडम्बनाओं, सामाजिक मर्यादा और पारिवारिक अपेक्षाओं के बीच क्या अपने प्रेम को चिर – यौवन दे सकेंगे या उनका प्रेम भी “स्वप्रेम“ की आहुति बन जाएगा?

आदिवासी समुदाय के प्रति कर्तव्यनिष्ठ हो चुकी मुक्ता स्वतंत्रता की कौन सी नयी और अनूठी भाषा सीखेगी?

धरा और स्व-सहायता केंद्र का संचालन करती महिलाओं के साथ मुक्ता सतत विकास का कौन सा उद्देश्य साधना चाहती है?

सतत विकास के मुख्य मार्ग पे निर्बाध बढ़ता उपन्यास क्या वनवासियों को विकास का नया प्रारूप देगा?

कथानकों की आपकही सुनने के लिए पढ़िए -  धरा के अंक में

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