डॉ. मीनाक्षी जैन
पद्मश्री सम्मानित इतिहासकार एवं सीनियर फे लो, नेहरू स्मृति संग्रहालय एवं पुस्तकालय, नई दिल्ली
पुष्पेंद्र कुलश्रेष्ठ
वरिष्ठ पत्रकार एवं राजनीतिक विश्लेषक
संजय दीक्षित (रिटा. आइएएस)
पूर्व अपर मुख्य सचिव राजस्थान सरकार एवं चेयरमैन, जयपुर डायलॉग्
अनुज धर
प्रसिद्ध लेखक
मधु पूर्णिमा किश्वर
सीनियर फेलो, नेहरू स्मृति संग्रहालय एवं पुस्तकालय, संस्थापक मानषी एव नेशनल प्रोफेसर, इंडियन काउंसिल ऑफ सोशल साइसं रिसर्च
नीरज अत्री
प्रसिद्ध लेखक, शिक्षाविद एवं राष्ट्रवादी विचारक
शकील चौधरी
पाकिस्तान के वरिष्ठ पत्रकार एवं स्कॉलर
शेखर सेन
पद्मश्री से सम्मानित प्रसिद्ध रंगकर्मी एवं पूर्व अध्यक्ष, राष्ट्रीय संगीत नाट्य अकादमी
आलोक श्रीवास्तव
प्रसिद्ध कवि और पत्रकार
डॉ. मीनाक्षी जैन
पद्मश्री सम्मानित इतिहासकार एवं सीनियर फे लो, नेहरू स्मृति संग्रहालय एवं पुस्तकालय, नई दिल्ली
मधु पूर्णिमा किश्वर
सीनियर फेलो, नेहरू स्मृति संग्रहालय एवं पुस्तकालय, संस्थापक मानषी एव नेशनल प्रोफेसर, इंडियन काउंसिल ऑफ सोशल साइसं रिसर्च
संजय दीक्षित (रिटा. आइएएस)
पूर्व अपर मुख्य सचिव राजस्थान सरकार एवं चेयरमैन, जयपुर डायलॉग्
गांधी की हत्या इतिहास की एक बड़ी घटना जरूर थी लेकिन ये नियति थी। क्योंकि तब तक गांधी ने अपना कद इतना गिरा लिया था कि उन्हें केवल हर बात पर बेवजह टांग अड़ाने वाले की तरह देखा जाने लगा था। उनका व्यवहार भारत की नई सरकार के लिए उलझने खड़ी कर रहा था। मुसलमान गांधी को अपने फायदे के लिए इस्तेमाल कर रहे थे, जबकि गांधी की यहीं बातें हिन्दुओं के लिए जहर के प्याले के समान थीं। प्रखर श्रीवास्तव की यह पुस्तकें बिना किसी लागलपेट के विभाजन के दौर में गांधी की नीतियों का लेखा-जोखा प्रस्तुत करती हैं। उन्होंने एक-एक घटना की दस्तावेजों की मदद से सटीक व्याख्या की है। प्रखर का यह प्रयास न केवल कई मिथकों को तोड़ता है बल्कि इतिहास के वर्णन को भी नए सिरे से स्थापित करता है। यह पुस्तक इतिहास के उन पाठकों के लिए है जो इसे नई नजर से पढ़ना और समझना चाहते हैं।
नीरज अत्री
प्रसिद्ध लेखक, शिक्षाविद एवं राष्ट्रवादी विचारक
पुष्पेंद्र कुलश्रेष्ठ
वरिष्ठ पत्रकार एवं राजनीतिक विश्लेषक
गांधी पर अब तक जितना भी लिखा गया एक तरफा ही लिखा और सुनाया गया। गांधी राम और सीता से भी बढकर है, सीता जी के चरित्र पर सवाल कर सकने की आज़ादी हैं, राम पर सकते है लेकिन गांधी पर किसी तरह का सवाल उठाना तो दूर सोचने तक इजाजत नहीं है। गांधी पर वही चर्चा हो, जिसकी सीमाएँ लम्बे समय से तय हो चुकी है…. अगर गांधी को तय सीमाओं से बाहर ले जाने की जिसने भी कोशिश की तो फिर उसका सामूहिक बौद्धिक बहिष्कार कर अलग थलक करने की चौतरफ़ा कोशिश की जाती रही है, क्योंकि इस ब्रिगेड के लिए गांधी एक ब्रांड हैं और इस ब्रांड में सिर्फ मुनाफ़ा ही मुनाफ़ा है जो भी इस पर सवाल उठाने की कोशिश करेगा उस पर अहिंसा के पुजारी हिंसक हो जाते है पहला हमला ये गोडसे समर्थक है, ये संघी हैं अनेकों अमर्यादित भाषाई हमले होना शुरू हो जाते है, लेकिन संचार क्रांति के इस दौर में वे तय सीमाएँ टूट रहीं है। गांधी के बारे में बने हुए मानक ढह रहे हैं। वहीं दूसरी तरफ इस क्रांति से नए मानकों का निर्माण भी हो रहा है। इस क्रम में मेरे दोस्त प्रखर श्रीवास्तव ने एक तथ्यात्मक, शोध आधारित, इतिहास में दर्ज उन पन्नों से धूल हटाई है जो गांधी के राजनीतिक, सामाजिक और सार्वजनिक निजी जीवन अनेकों घटनाओं जैसे मुस्लिम लीग की भूमिका, नेहरू को अध्यक्ष बनाने का सच, नवाखली और मोपला में हिन्दुओं के नरसंहार पर उनकी चुप्पी ऐसे अनेक तथ्यों को एक पुस्तक के रूप में रखा है। प्रखर की प्रखर वाणी तो आपने सोशल मीडिया और टेलीविजन पर तो ज़रूर सुनी होगी लेकिन अब उन्होंने अपनी वाणी को लेखनी में तब्दील किया है। मुझे पूरी उम्मीद है और मेरी शुभकामनाएँ है की उनकी ये कोशिश आज के युवाओं को गांधी के सिलसिले में एक नया पर्सपेक्टिव देंगी।
अनुज धर
प्रसिद्ध लेखक
शकील चौधरी
पाकिस्तान के वरिष्ठ पत्रकार एवं स्कॉलर
शेखर सेन
पद्मश्री से सम्मानित प्रसिद्ध रंगकर्मी एवं पूर्व अध्यक्ष, राष्ट्रीय संगीत नाट्य अकादमी
आलोक श्रीवास्तव
प्रसिद्ध कवि और पत्रकार